Tuesday, August 02, 2011

मेरी काहानी

दिन धुप में झुलाजता है
रात चांदनी में चमकता
कभी धुंद में घिरा रहता
कभी झुलज के सूख जाता
नदी होता तो क्या बात होती
में तो पानी हूँ तालाब का

बहती हवाओ ने उलझाया मुझे
किनारों ने भी ठुकराया
लहरें बने कभी, कभी ठेरा रहा
ऊन्ही पारो से टकराता रहा
नदी होता ...तोह क्या बात होती
में तो पानी हूँ तलब का

मचिलियो से भरा हूँ
कुछ पेर्ड भी है किनारों पे खड़े
मचिलिया मरर जाते सारे
पाते भी झड जाते है
नदी होता तोह बेह जाता
में तोह पानी हूँ तालाब का

आसमान नीली तोह में नीला
बादल घिर जाए तोह में कला
मेरा कोई रंग नहीं , पहचान नहीं
फिर भी कोशिस करता रहा
नदी नहीं तोह क्या बात हुई
में पानी, पानी तालाब का